आमची ओळख
वंचित बहुजन आघाडी का मानना है की भारत में दो संस्कृतियां, परंपरा कार्यरत हैं, एक समानता और इंसानियत को बढ़ावा देनेवाली संतों की परंपरा, और दूसरी असमानता और अल्पजनों द्वारा बहुजनों के शोषण की वैदिक परंपरा। ये दोनों परंपराएं हमेशा से एक दूसरे के खिलाफ रही हैं। देश के वंचित समूहों का कल्याण संतों की परंपरा से ही हो सकता है। इसीलिए वैदिक परंपरा के खिलाफ बहुजनों की इस जंग में वंचित बहुजन आघाडी संतों की परंपरा को बढ़ावा देती है।
देश में आज की राजनैतिक स्थिति को देखा जाए तो ऐसा दिखाई देता है की राजनैतिक व्यवस्था को पूंजीवादी और कुछ विशेष जातियों के विशेष घरानों ने पूरी तरह कब्जे में रखा हुआ है। देश के वंचित बहुजन समूहों को कोई सच्चा प्रतिनिधित्व नही मिल रहा है, जो इन समूहों की हर तरह की समस्या का मूल बना हुआ है। कोई भी एक वंचित समूह इन पूंजीवादी, विशेष घरानों की पकड़ को टक्कर नही दे सकता। अनेक वंचित समूह मिलकर, आपसी मतभेद भुलाकर या सुलझाकर इन्हें जरूर गिरा सकते हैं। इसीलिए वंचित बहुजन आघाडी देश के सभी वंचित बहुजन समूहों को संगठित करके अपनी स्वतंत्र पहचान तथा स्वतंत्र ताकत के बल पर वंचित समूहों के लिए सच्चा प्रतिनिधित्व हासिल करने का उद्देश्य रखती है। हमारा हर कदम, हर निर्णय इसी पवित्र उद्देश्य को हासिल करने के इरादे से लिया जाता है। वंचित बहुजन आघाडी का मानना है की इस तरह से हासिल किए गए सच्चे प्रतिनिधित्व के बल पर ही देश के तमाम वंचित बहुजन समूहों के दुःखों का निवारण हो सकता है।
वंचित बहुजन आघाडी ने पहली बार २०१९ के लोकसभा आम चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारे। इस चुनाव में AIMIM ने भी साथ दिया था। कांग्रेस को भी गठबंधन का प्रस्ताव दिया गया। महाराष्ट्र की ४८ लोकसभा सीटों में से १२ सीट ऐतिहासिक रूप से प्रतिनिधित्व से वंचित समूहों को देने की मांग रखी गयी। साथ ही RSS को संविधान के दायरे में लाया जाए, और इसका प्रारूप पहले से ही तय हो यह प्रमुख मांग रखी गयी। दोनों जायज मांगें पूरी न होने के कारण कांग्रेस से समझौता न हो सका।
अपनी राजनीतिक सोच के अनुसार(न भी होगी संख्या भारी, फिर भी मिलेगी भागीदारी) अलग अलग वंचित समूहों को संगठित कर आर्थिक या जातिगत संख्या के बल को न देखते हुए अनेक वंचित समूहों के व्यक्तियों को प्रतिनिधित्व दिया गया। किसी पूंजीपति का साथ न होने के बावजूद केवल वंचित समूहों के खून पसीने की कमाई से दिए गए दान पर ४८ सीटों पर विविध समूहों के उम्मीदवार उतारे गए, ऐसे समूह जिनके नाम तक मुख्य धारा में लोगों ने नही सुने थे। कई बाहुबली नेताओं को टक्कर देकर अपने बलबूते पर ४१ लाख मत प्राप्त किए। कई जगहों पर प्रस्थापित बाहुबली नेताओं को वंचित समूहों की राजनीतिक ताकत का अहसास हुआ। इसी चुनाव में औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र से वंचित बहुजन आघाडी व AIMIM के उम्मीदवार इम्तियाज जलील विजयी हुए। २० साल से हिंदुत्ववादी शिवसेना और जातीय बाहुबलियों का गड रहे इस क्षेत्र में मुस्लिम उम्मीदवार को जिताने का करिश्मा वंचित बहुजन आघाडी की सकारात्मक और स्वतंत्र राजनीति का फल है।
इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में AIMIM ने साथ छोड़ा, लेकिन वंचित बहुजन आघाडी ने फिर वंचितों के हित को ध्यान में रखकर स्वतंत्र रूप से २३४ सीटों पर उम्मीदवार उतारे और २४ लाख मत प्राप्त किए। कई जगहों पर दूसरे नंबर के मत प्राप्त करके फिर एक बार पूंजीवादी और बाहुबली घरानों को अपनी राजनैतिक ताकत का अहसास कराया।
भविष्य में अपने स्वतंत्र राजनैतिक बल पर वंचित बहुजन आघाडी देश के सभी वंचित बहुजन समूहों को सच्चा प्रतिनिधित्व प्राप्त कराकर रहेगी।